Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 20
अपडेट 20
तीन महीने बाद सितम्बर 1982 मे किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी ने टेलिग्राम कर दिया की वे लोग जोधपुर पहुच रहे है। जय अब चार साल और 9 महीने का हो चुका था और सामने विक्रम का मुन्ना भी 4 साल का हो चुका था। दोनो की जोड़ी अच्छी लग रही थी। मुन्ना बिल्कुल फॉरिन बच्चे की तरह व्हाइटिश हुवा था और जय व्हीटीश। सब से बड़ी खूबी मुन्ना मे ये थी की उसकी आँखे, ईश्वर ने मा क्रिष्ना को बड़ी बड़ी आँखे दी थी और मुन्ना को मछली आकर की आँखे, उपर से ब्राउन कलर दिया था। गालो मे खंजन (ऐसे लड़के पिता के सबसे करीब होते है)। रेल्वे स्टेशन पर फिर से एक बार विक्रम किशोरीलाल के गले मिल रहा था। विक्रम ने राजेश्वरीदेवी का भी अभिवादन किया और अपने साथ आये मुन्ने को राजेश्वरीदेवी ने गोद मे उठा लिया और जय को विक्रम ने गोद मे उठा लिया। और सब हवेली की और चल पडे।
क्रिष्ना तो राजेश्वरीदेवी को देखते ही सीढ़ियो से दौड़कर नीचे आई और उसकी बाहो मे समा गयी। र्राजेश्वरीदेवी के मूह से चीख निकल गयी,”समाल के क्रिष्ना ।” क्रिष्ना को तब ख़याल आया की नौवा महीना ख़तम हो के उपर से तीन दिन हो चुके थे। उसकी आँखे बड़ी हुई और ,”सॉरी, सॉरी” उसके मूह से निकल पड़ा।
क्रिष्ना का रूप और खिल चुका था। होठो मे और लहु उभर आया था। सब ने साथ चाय पी और 1 घंटे के बाद किशोरीलाल ने पुछा,”अरे बंसी कहा है?”
क्रिष्ना,”भैया आते ही होंगे, उसे पता है आपलोग आनेवाले हो, इसीलिए सब काम छोड़कर 10 दिन की छुट्टी ले रखी है उसने।”
सब बाते कर रहे थे की बंसी आया और आते ही किशोरीलाल की बाहो मे समा गया । वही चाल, वही तेवर, कुछ नही बदला था बंसी मे। वोही धोती और कुर्ता।
“अरे, तू तो बड़ा बिज़्नेसमेन बन गया था, फिर भी ये हाल?” किशोरीलाल ने उसे चीडाया।
“भैया, बिजनेस काहे का, बस संभाल रहा हु बाबा के नाम से और क्या चाहिये मूज़े। ये तो बहन के घर का खाना भी हराम होता है, वरना मै तो बाबा को कभी नही छोड़ता।” बंसी ने गद गद होते हुये कहा।
सब की आँखो मे खुशी जलक रही थी। विक्रम ने पूरी हवेली फिर एक बार सब को बताई। जिस को क्रिष्ना ने नया रूप दिया था। वैसे क्रिष्ना ने पीछले नौ महीने बिल्कुल अकेले जैसे ही बिताये थे। क्यूकी ना ही तो विक्रम उसके पास रह सका था, नही तो बंसी। बस अकेली अकेली सब करती रहती थी। और आज तो मानो हवेली मे जैसे कोई उत्सव का माहोल था।
किशोरीलाल ने उस अग्रीमेंन्ट के बारे मे पुछा तो विक्रम ने बताया की,”बंसी ने भी साइन कर दिया था, लेकिन कोर्ट ने इस हप्ते की तारीख दी है और वैसे भी क्रिष्ना को भी समय पूरा हो चुका था। सब मिलकर एकसाथ खुशिया आनेवाली थी इस घर मे।
और कोर्ट की तारीख के दिन विक्रम, किशोरीलाल, बंसी और वकील मि. सेन इकठ्ठा कोर्ट मे मिले और कारवाई शुरू हुई। इस बार रामेश्वर नही था लेकिन उस का साइन मौजुद था और कोर्ट मे नही आने की वजह की मेडिकल रीपोर्ट थी। आधे घंटे की कारवाई के बाद अफिडेविट पर कोर्ट ने नया ऑर्डर इश्यू कर दिया और विक्रम आज़ाद हो गया।
सब खुश चेहरे के साथ कोर्टरूम से बाहर आये और थोड़ी देर वहा खड़े थे । तभी मि. सेन का नौकर बगी से उतरा और बोला,”विक्रम बाबू आप की हवेली से ये बगी आई है और आपलोगो को जल्दी हवेली बुलाया है। बिटिया रानी के बारे मे समाचार है।
सब जल्दी बगी मे बैठने लगे तभी मि. सेन ने बताया,”अगर ऐतराज़ ना हो और मि. किशोरीलाल का वहा कोई काम ना हो तो एक आखरी फोर्मालिटी बाकी है तो मै चाहूँगा की वो मेरे साथ आये, बाद मे मै खुद अपनी कार मे उसे छोड़ जाउंगा।”
सब ने हामी भर दी और विक्रम और बंसी जल्दी ही हवेली की और रवाना हुए और ज़िंदगी मे पहलीबार किशोरीलाल अकेले मि. सेन के साथ एम्बेसेडर कार मे बैठ गया और दोनो मि. सेन के घर आये।
रास्ते मे मि. सेन ने ड्राइवर और उसके बीच का पड़दा डाल दिया और किशोरीलाल ने बात शुरू की,”अब क्या फोर्मालिटीस बाकी रह गयी है? मै आप को जानता हु ज़रूर कुछ प्राइवेट बात है जो आप विक्रम की हाजरी मे कहना नही चाहते थे।”
“बिल्कुल ठीक अंदाज़ा है आप का, लेकिन घर जा के आराम से बाते करते है ना” मि. सेन ने बताया।
मि. सेन ने घर ले जा कर चाय पिलाई और फिर उसने अपने प्राइवेट रूम मे ले जाकर दोनो आमने सामने बैठ गये।
मि. सेन ने बात की शुरुआत की,”किशोरीबाबु आप जानते है आज आपने क्या किया है?”
किशोरीलाल ने हसकर जवाब दिया,”ओह,
तो ये बात है। वकिलबाबू, जिसका आप को डर है, वो मूज़े भी है। लेकिन मूज़े ईश्वर पे पूरा भरोसा है और विक्रम को मैने आप, बंसी, क्रिष्ना और ईश्वर के सहारे आज आज़ाद कर दिया है।
मि. सेन ने हसकर चिरुट सुलगाइ और खडे होकर लम्बा कश खीचा,”ईश्वर, प्रार्थनाओ मे तो हम वकील लोग भी विश्वास करते है, लेकिन हम वकिलो का एक और भी फ़र्ज़ होता है की हर बात को क़ानून की नज़रो से भी देखनी पड़ती है,” थोड़ा रुककर वो आगे बोले,”ये तो मूज़े आप का पूरा परिचय हो गया है की आप को धनदौलत की कुछ नही पड़ी है, और न ही तो बंसीबबू को पड़ी है, चलो बंसीबबू को तो क्रिष्ना का घर बस गया तो उसका मकसद तो वैसे भी समाप्त हो गया और बात रही मेरी, मूज़े भगवान ने काफ़ी कुछ पहले से ही दे रखा है तो मूज़े तो कोई इंटरेस्ट नही है धनदौलत मे। लेकिन शायद बुजुर्ग होने के नाते और महाराजा और गंगाधर के सब से विश्वासु वकील होने के नाते जो बाते मै नही बता सकता था वो बाते शायद आज बताना चाहूँगा।”
“क्या कोई गंभीर बात है?” किशोरीलाल ने पुछा।
“गंभीर तो नही है, लेकिन पूरी बाते तो शायद बताना बेकार है, कुछ बाते आप की जानकारी मे हो तो अच्छा रहेगा।” मि. सेन ने बताया।
किशोरीलाल बाते सुन ने को बेताब हो चुका था। मि. सेन ने बताया,”किशोरीबाबु, आप शायद नही जानते की आप ने आज विक्रम को क्या दिया है, शायद विक्रम को भी अंदाज़ा ना हो इतनी धनदौलत आज उस का वेइट कर रही है। टोटल मिला के 12 करोड की संपति का मालिक आज से विक्रम बन चुका है।” (80 के दशक मे आप सोच लीजिये 12 करोड की कीमत क्या हो सकती थी जहा साइकिल केवल 80 या 100
रुपयो मे मिल जाती थी)
“अब ये बात मूज़े आज क्यू बता रहे है। और वैसे भी 12 हो या 1200,
जो मेरा था ही नही उसे मै जानू या ना जानू क्या फ़र्क पड़ता है।” किशोरीलाल ने हसकर बोला।
“मै जानता था की आप का जवाब यही होगा किशोरीबाबु” मि. सेन ने थोडा रुक कर आगे कहा,”लेकिन एक वकील के नाते अब जो कहनेवाला हु वो ध्यान से सुनिये। कौन बाप अपने बेटे को इतनी कठोर सज़ा देता है की 12 करोड की संपति से वंचित कर देता है और उसके आसपास ऐसे आदमियो को ट्रस्टीस बना देता है ता की उसका जीना हराम हो जाये, ऐसा क्या हुवा होगा की गंगाधरबाबू को इतना कठोर निर्णय लेना पड़ा।”
“शायद आप कुछ ज़्यादा जानते है मुज से” किशोरीलाल ने कहा।
“अब तो इस बारे मे चर्चा करना ही बेकार है, लेकिन मेरी एक सलाह है की आप विक्रम को यू अकेला मत छोड़िये प्लीज़।” मि. सेन ने कहा।
किशोरीलाल ने हसकर जवाब दिया,”मैने कहा ना की मूज़े अपने परमात्मा पर पूरा विश्वास है।”
“परमात्मा भी तभी साथ देता है जब हमारे प्रयत्न सही हो किशोरीबाबु, मेरी सलाह ध्यान से सुनिये अगर फिर भी आप को उचित ना लगे तो जैसे आप की मर्ज़ी, मै तो एक वकील हु। मेरा काम है अच्छा करना, आप तो जानते ही है की आप के साथ मैने भी इतनी बड़ी संपाति को ठुकराया है।” मि. सेन ने दलील पेश की।
किशोरीलाल थोड़ा रुक गया और बोला,”हा ये बात तो ठीक है।”
मि. सेन,”तो मेरी बात सुनिये। मै और बंसीबबू तो यहा है ही लेकिन पुराने अग्रीमेन्ट मे एक और क्लॉज़ भी था जिसके बारे मे मैने किसी को नही बताया की अगर आप ने अपना नाम विड्रो करने के बाद भी अगर विक्रम को आज़ाद कर दिया और 5 साल मे कभी भी आप को ऐसा लगे की विक्रम ने आज़ाद होकर आप के विश्वास को तोड़ा है तो आप फिर एक नया अफिडेविट बनाकर आज के कोर्ट के फ़ैसले को चॅलेंज कर के आज के फ़ैसले को तोड़कर फिर एक बार विक्रम को आप का डिपेन्डेन्ट बना सकते है। और मैने अफिडेविट तैयार ही रखा है, सिर्फ़ आप मुज पर भरोसा कर के साइन कर दीजिये, अगर ज़रूरत हुई तो आप के कहने पर ही मै इसे कोर्ट मे पेश करूँगा और आप हाजिर भी नही होंगे फिर भी विक्रम अपने आप ही डिपेन्डेन्ट बन जायेगा प्लीज़। और इस बार न मै, न बंसीबाबु और न रामेश्वर, बल्कि केवल आप ही सर्वोपरी होंगे।” कहकर मि. सेन ने अपनी बात पूरी की।
“नही वकिलबाबू मूज़े तो इसकी कोई ज़रूरत नही लगती।" किशोरीलाल ने कहा
“देखिये जो अंदर की बाते है वो शायद अभी करना बेकार है क्यूकी बहुत पुरानी हो चुकी है और गड़े मुर्दे उलेचना ठीक भी नही, लेकिन उसमे से शायद कुछ बाते विक्रम को या तो पता है और या तो शायद पड सकती है, तब अगर विक्रम कुछ करना चाहेगा तो आप का ये अग्रीमेंन्ट उस वक़्त आप के ही काम आ सकता है। प्लीज़ इस बात को मज़ाक मत सामजिये वरना 12 करोड की संपति से विक्रम कुछ भी कर सकता है। ये तो सोचिये जब पैसा नही था तो उसने उधार कर दिया है, अब तो पैसा है ना जाने क्या कुछ हो सकता है। आप की, बंसीबबू की और मेरी और खुद क्रिष्ना की जान को भी ख़तरा हो सकता है। शायद ऐसा भी हो के विक्रम के हाथो कुछ ना रहे और वो मजबूर हो जाये ग़लत रस्तो पे चड़ने के लिये। और मै
राजाशाही के कुछ राज आप के सामने नही रख सकता, वफादारी का सवाल जो है। फिर भी मै
कुछ हद तक आप को दिखाना जरुरी समजता हु।“
अब मि. सेन ने किशोरीलाल के अंदर के ज़मीर और दिमाग को जगाया था।
बाद मे भी कुछ रजवाडे के दस्तावेज दिखाकर कुछ पेपर्स, ऐसी दलीले और एक्जाम्पल्स मि. सेन ने उसे बताये की किशोरीलाल ने आख़िर उस अफिडेविट मे साइन कर दी और दोनो ने आपसी समजौता
किया की ये बात उन दोनो तक ही सिमीत रहेगी। बाद मे थेंक्स बोल के वहा से दोनो निकले हवेली की ओर।
मि. सेन और किशोरीलाल कार मे हवेली पहुचे तो देखा की दिवानखाने मे विक्रम और बंसी खड़े थे। पुछने पर बताया की राजेश्वरीदेवी और एक होस्पिटल की लेडी डोक्टर और एक नर्स सब उपर विक्रम के कमरे मे है। करीब डेढ़ घंटे से मेहनत हो रही है। जब वे लोग कोर्ट मे थे तभी डीलिवरी प्रोसेस शुरू हो चुका था, लेकिन क्रिष्ना की समज मे कुछ नही आया था।
बात कुछ ऐसी हुई थी की सुबह से क्रिष्ना को पानी गिरना शुरू हो चुका था। लेकिन ऐसा तो पीछले 10 दिन मे कई बार हुवा था, जब भी पानी गिरता था बहुत कम मात्रा मे।
लेकिन क्रिष्ना को जब लगातार आधा घंटा पानी का बहाव हुवा और बाद मे उसने राजेश्वरीदेवी को बताया। उपर बेडरूम मे जाकर राजेश्वरीदेवी ने क्रिष्ना को चेक किया तो वो फ़ौरन दौड़ी और सबसे पहले क्रिष्ना को पूछकर फॅमिली डोक्टर का कोन्टेक्ट किया और बाद मे एक पहचानवाले बगीवाले के साथ मेसेज वकील के यहा भेज दिया, उसे पता था की मेसेज 1 घंटे के अंदर विक्रम तक पहुच जायेगा और सचमुच इनलोगो को मेसेज पहुच गया और वे लोग समय से वापस पहुच भी चुके थे। बाद मे विक्रम और बंसी ने हवेली पहुचकर राजेश्वरीदेवी से पुछा, लेकिन एक स्त्री के नाते राजेश्वरीदेवी कुछ बता नही पाई और लेडी डोक्टर ने विक्रम को सबकुछ समजाया की हकीकत मे क्या हुवा था।
क्रिष्ना को पानी का तेज़ बहाव आया हुवा था। पहली डीलिवरी के वक़्त वैसे भी तकलीफ़ हुई थी। और इस वक़्त भी यहा बच्चा जहा स्त्री के यूटरस-वूंब मे होता है जिसे हम गर्भाशय कहते है उसमे मे एक प्लास्टिक बेग जैसा आवरण होता है, जहा बच्चा पल के नौ महीने बीताता है। बच्चा और उसकी मा दोनो अंबिलिकल कॉर्ड से जुड़े होते है (जिसे बच्चा पैदा होने के बाद काटना पड़ता है, और धीरे धीरे बच्चे के जन्म के बाद वो छोटा होता हुवा फिर से अपनी मुल जगह स्थित हो जाता है)। उस यूटरस-वूंब के आसपास जर्दी होती है जो बच्चे को लगातार 9 महीने तक खुराक का काम करती है, लेकिन वो प्लास्टिक बेग के आसपास होती है और बच्चा उस अंबिलिकल कोड से ग्रहण करता रहता है।
जब डीलीवरी के वक़्त स्त्री को पानी गिरना शुरू होता है तब उसे अड्मिट किया जाता है और अगर नॅचुरली लेबर पेइन हुवा तो वैसे, नही तो इंजक्शन देने के बाद लेबर पेइन शुरू करवाना पड़ता है। क्रिष्ना को पानी के बहाव से ये प्रोब्लेम आइ थी और लेबर पेइन बिल्कुल नही था। शायद वो
तेजी से दौडी थी ये वजह थी लेकिन अब क्रिष्ना को पानी तेज़ी से बहता चला गया, जब तक डोक्टर और नर्स वहा पहुचते, क्रिष्ना का बहाव इतना था की अब बच्चे का सिर उस यूटरस-वूंब से बाहर आ चुका था। अगर देर हो गयी तो बच्चा पानी भी पी सकता है और उसकी तुरंत मृत्यु हो जाती है। क्रिष्ना को दर्द बिल्कुल नही था, मतलब की बच्चा आगे यूटरस-वूंब के बीच फस गया था। जिस की वजह से क्रिष्ना को आखरी वक़्त की डीलीवरी मे दर्द बढ़ गया था। पानी था नही की बच्चा रपट के निकल आये और कोई बुजुर्ग औरत भी नही थी जो पिछले महीनो मे घी, दुध और ऐसी औषधिया खिलाती, जिसकी वजह से बच्चे के जन्म के वक़्त परेशानी ना हो।
अभी मॉडर्न युग मे तो सकिंग मशीन से बच्चे को उठा लेते है (जैसे 3 ईडियट्स मे दिखाया है वैसे ही) और अभी सब डोक्टर का बिजनेस भी यही है की शुरुआत मे गर्भवती स्त्रियो को विटामिन और ताकत की टॅब्लेट्स देते है और बच्चे को तंदूरस्त करते है और फिर आखरी वक़्त बोलते है की नॉर्मल डेलिवरी संभव नही है, सीझेरीयन करना पड़ेगा और स्त्रीया भी ज्यादा तकलीफ़ ना हो तो अपना पेट कटवा लेती है और डोक्टर को एक बड़ी रकम मिल जाती है। लेकिन उन विटामिन और इन्जेक्शंस से बच्चे को जो गर्मी हो जाती है और हम महसूस करते है की आज के बच्चे को ठंडी के मौसम मे भी पंखे ओन ही चाहिये होता है, उसकी एकमात्र वजह ये विटमिन्स की गोलिया और इंजक्शन्स की गर्मी है। इस के
अलावा आजकल ओ.आर.एस. भी दिया जाता है जो
पानी की कमी को कुछ हद तक दुर करता है मगर उस वक़्त ये भी मुमकिन नही था।
उस वक़्त ऐसा कम से कम घर मे तो संभव नही था और डोक्टर ने क्रिष्ना को लेबर पेइन का इंजक्शन दिया था और बोला था की कम से कम तीन चार घंटे लग ही जायेंगे, तो अब तक तीन घंटे से सब राह देख रहे थे।
अचानक राजेश्वरीदेवी दौड़ के नीचे आई और किचन मे गयी। केवल तीनचार मीनीट मे गरम पानी लेकर जाने लगी और सब के चेहरे के सामने देखकर बोला,”बस कुछ ही समय मे जन्म हो सकता है, चिंता मत करीये इलाज चल रहा है और क्रिष्ना को कोई तकलीफ़ अब नही है, बहुत सहा है बेचारी ने।”
इसके बाद 10 मिनिट्स मे बच्चे की रोने की आवाज़ आई और इसके और 10 मीनीट के बाद राजेश्वरीदेवी दौड़ के नीचे आई और सब को बोली,”बधाई हो हमारी बहु की और विक्रम भैया आप को मुबारक आप का जमाई।”
इतना सुनकर ही सब बहुत खुश हुये और मिठाइया बाटी गइ.......लेकिन क्या जन्म लेनेवाली कन्या के साथ ही जय का विवाह होगा? कुदरत की मरजी कुछ अलग ही थी। क्युकी इस कन्या के जन्म से पहले ही एक और कन्या का जन्म जिस के साथ जय का विवाह होनेवाला था वो जन्म ले चुकी थी। लेकिन कब, क्यु, कैसे और जाने कहा?????
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फिर तीन साल तक न ही तो किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी जोधपुर जा पाये और न ही तो विक्रम, क्रिष्ना और बंसी जूनागढ़ जा पाये। शुरुआत मे लेटर्स आते थे फिर तो वो सिलसिला भी ख़त्म हो गया।
विक्रम का मुन्ना जोधपुर की प्राइमरी स्कूल मे तीसरी क्लास मे था तभी एक हादसा हो गया। एक बार बंसी की ट्रक से स्मगलिंग का माल पकड़ा गया और पुलिस बंसी को पकड़ के ले गयी। विक्रम का बहुत बडा नाम था और इसिलिये ये न्यूज़ पुरे देशभर के लोकल पेपर मे छपे हुये थे।
कहानी के बीच मे समजने
के लिये कुछ माहिती देता हु.......
(पहले के जमाने मे फोन नही थे, सिर्फ टेलीकोम डीपार्टमेंट जो आज बी.एस.एन.एल. के नाम से जाना जाता है वो 90 के दशक मे डीपार्ट्मेंट ओफ टेलीकोम्युनिकेशन्स के नाम से जाना जाता था और उस के पहले 80 के दशक मे पी.एंड टी. मतलब पोस्ट एंड टेलीग्राम के नाम से सरकार ने ये विभाग बनाया हुवा था। बाद मे डीपार्ट्मेंट
ओफ पोस्ट और डीपार्टमेंट ओफ टेलीकोम्युनिकेशंस अलग कर दिया गया। इस का एक अलग इतिहास है की क्यु आज तक डीपार्ट्मेंट ओफ पोस्ट अभी तक खडा है और टेलीकोम विभाग पब्लिक सेक्टर युनिट मे तबदिल किया जा चुका है। 80 के दशक मे आप के घर लेंडलाइन फोन हो और उस पर किसी को कोल करना हो तो टेलीफोन ऎक्ष्चेंज मे आप को उस नंबर के लिये कोल बुक करानी पडती थी। जब लाइन फ्री हो और टीलीफोन विभाग के ओपरेटर अपने एक्स्चेंज से उस फोन पर कोल करेगा और फिर एक्ष्चेंज मे एक पिन की मदद से आप को कोल करेगा, दोनो कोल को मिलाने के लिये उस पीन को मशीन मे लगायेगा और दोनो कोल जुड जायेगी जिसे आज हम कोंफरंस कोल भी कह सकते है। दोनो के बीच केवल 3 मिनिट होते थे बात करने के लिये अगर ज्यादा समय लेना हो तो आप को ओपरेटर को बोलना होता था की आगे और 3 मिनिट बात करनी है। जब तक आप की बात चालु रहेगी वो ओपरेटर चाहे तो हेडफोन से आप की बात सुन भी सकता था। बाद मे टेलीफोन की संख्या
बढने लेगी तो डायरेक्ट फोन भी कर सक्ते थे और फिर तो मोबाइल फोन ही आ गया। टेलीफोन विभाग मे आखरीबार 1983 और 1984
मे भर्ती की गइ थी उस के बाद रेग्युलर भर्ती हमेशा के लिये बन्ध कर दी गइ थी। हा कुछ पोस्ट मे भर्ती चालु रखी थी लेकिन बहुत कम भर्ती करवाइ थी और जो भी थे उन सब को 31 जनवरी 2020 के दिन एक वोलंटरी रीटायरमेंट स्किम मे पैसा देकर छुट्टा कर दिया गया है। भारतभर मे करीब 156000 मे से 80000
लोगो को घर भेज दिया गया था। आज के दिन मे केवल 72000 स्टाफ बचे है भारतभर मे ।हा स्किम मे जानेवाले सभी को बहुत बडी रकम दी गइ थी और बदले मे सरकार अब उस विभाग की जमीन बेचकर अपना पैसा वसुल कर रही है। करोडो की जमीन लाखो मे बीक रही है इस वक़्त।)
(दुसरा टेलीग्राम सेवा के बारे मे........उस समय जब आप को कीसी को भी कोइ मेसेज पहुचाना हो तो दो रास्ते थे....1. सादी टपाल, या 2. इंनलेंड....सादी टपाल जिसे हम पोस्ट कार्ड कहते है उस मे आप आगे पुरा पन्ना और पिछे आधा पन्ना रहता है जो 6x4 की साइज मे आता है और पिछले भाग मे आप एड्रेस लिख के पोस्ट कर सक्ते है। ज्यादा लम्बा पत्र लिखना हो तो इंनलेंड जो पतला साइज का और इसे आप बन्ध कर सक्ते है और थोडा लम्बा लेटर लीख सकते है और ब्लु कलर मे उपलब्ध होता है। पोस्टकार्ड ओपन रहता
है और इंन्लेंड को आप कवर कर सक्ते है। लेकिन इसे पोस्ट करने के बाद कम से कम एक सप्ताह लग सकता है पहुचने मे। अगर इमरजंसी मेसेज देना हो तो टेलेग्राम सुविधा होती थी। इस सुविधा मे आप को टेलीग्राफ ओफिस मे जाकर शोर्ट मेसेज का फोर्म भरना होता था। जैसे कमिंग सुन, बधाइ हो, जन्म दिन मुबारक मतलब शोर्ट मेसेज....और वो मेसेज टेलेग्राफ ओपरेटर एक मशिन पर लेंग्वेज मे डोट...डेश...फुलस्टोप से टाइप करेगा कोड भाषा मे और वो पानेवाले शहर के एक्ष्चेंज मे रीसीव होगा....रीसीव करनेवाले एक्ष्चेंज मे टेलेग्राफ ओपरेटर उस कोड भाषा को हिन्दी, अंग्रेजी या लोकल भाषा जो आप ने चुनी हो उसे टाइप करेगा एक पर्ची पर और वो पर्ची आन्धी हो या तुफान, बारिश हो या कुछ भी तकलीफ हो लेकिन पोस्ट मेन आप के घर तक वो मेसेज पहुचायेगा। ये टेलेग्राफ सेवा 15.07.2013 को भारतभर मे हमेशा के लिये बन्ध कर दी गइ है क्युकी अब एस.एम.एस. सेवा उपलब्ध है। उपर से कइ कुरियर सर्वीसीज उपलब्ध है इसिलिये पोस्ट विभाग मे बहुत कम पोस्टकार्ड और इंनलेंड बीकते है।)
चलिये अपनी कहानी मे वापस चलते है.......
अब तो विक्रम के घर फोन आ चुका था। ये माहिती विक्रम की
और से किशोरीलाल को दी हुइ थी। वैसे भी किसी भी शहर मे कीसी का फोन नम्बर लेना हो
तो इंकवायरी नम्बर से या टेलीफोन डायरी से जाना जा सकता था।
सबसे पहले किशोरीलाल ने बाहर के फोन से ट्रंक कोल बुक किया और फिर जा के अपनी रेल टिकेट ले कर आ गया। राजेश्वरीदेवी ने साथ मे आने की ज़िद की, लेकिन किशोरीलाल ने मना किया और कहा,”ना जाने क्या हुवा होगा, शायद मूज़े ज़्यादा देर भी लग सकती है,तो मूज़े अकेले ही जाना होगा, जय की पढ़ाई छुट जायेगी और बेवजह तुम सब सब परेशान होगे।”
मन नही मान रहा था, लेकिन राजेश्वरीदेवी को हा बोलना ही पड़ा। तभी बाहर जहा से ट्रंक कोल बुक किया था वहा से
मेसेज आया की उस का जोधपुर से फोन आनेवाला है और किशोरीलाल वक़्त से उस फोन पर पहुच
गया और ट्रंक कोल से विक्रम फोन पर आया और दोनो तीन साल के बाद एकदुसरे की आवाज़ सुन रहे थे। (ये ट्रंक कोल कैसे काम करता है वो कीसी भी 70 दशक की पुरानी
फिल्मो मे देख लेना.....।)
किशोरीलाल,”वीकी क्या हुवा? मैने यहा पेपर मे पढ़ा की बंसी को पुलिस ने पकड़ा है?”
विक्रम,”हा के.पी.,
सच बात है, दो दिन पहले बंसी की ट्रक मे स्मगलिंग का माल पकड़ा गया है और वो पुलिस हिरासत मे है।”
“लेकिन क्यु? अपना बंसी ऐसा
कुछ नही कर सकता। मै वहा आता हु” किशोरीलाल।
‘अरे तू क्यू तकलीफ़ उठा रहा है, मै कोशिश कर रहा हु की उसे जामीन मिल जाये” विकम ने कहा।
"तो अभी तक जामिन मिला नही क्या?” किशोरीलाल ने पुछा।
"नही मिला केपी, क्युकी कुछ ऐसा मामला है की शायद जामीन ना मिले और बंसी पर केस और मजबूत हो जाये।” विक्रम ने समजाया,”तू यहा मत आना मेरे दोस्त, वरना कुछ लेने के देने पड जायेंगे।”
“अरे कैसी बाते कर रहा है? बंसी फसा
हुवा है और मै वहा न आउ ऐसा हो सकता है क्या? मै वहा आ रहा हु” किशोरीलाल बोला और ऑपरेटर ने “टाइम्स उप” कर के कॉल काट दिया। विक्रम ना ना करता रहा, लेकिन कॉल कट गया।
घर आने के बाद देखा तो छोटे जय को बुखार आया हुवा था। ट्रेन का वक़्त हो चुका था इसिलिये
किशोरीलाल ने जय को चूमा और राजेश्वरीदेवी को चूमा फिर कुछ निर्देश दिये
और फिर घर के बाहर निकलने लगा।
राजेश्वरीदेवी ने कहा,”जल्दी लौट आइयेगा,जय आप के बिना नही रहनेवाला।”
“मै जानता हु, लेकिन वहा भी तो मेरी ज़रूरत है ना, मै जल्दी ही लौटने की कोशिश करता हु, तब तक जय को सन्भाल लेना और वहा की चिंता मत करना, मै सबकुछ संभाल लूँगा।” किशोरीलाल ने कहा।
“मूज़े आप पे भरोसा है, लेकिन फिर भी पुलिस का मामला है, संभाल के” राजेश्वरीदेवी ने चिंतातुर होकर कहा।
“ठीक है, तुम चिंता मत करो” और किशोरीलाल ने एक ऑटो कर ली और रेलवे स्टेशन पर आते ही ट्रेन मे बैठ गया और थोड़ी ही देर मे ट्रेन रवाना हुई।
किशोरीलाल सोचता था की ऐसा क्या हुवा होगा की बंसी की ट्रक मे स्मगलिंग का माल पकड़ा गया, क्या किसी की साज़िश है? या क्या हो सकता है? बंसी तो बिल्कुल ऐसा आदमी नही था फिर भी क्या हुवा होगा?
किशोरीलाल की विचारधारा शुरू हो चुकी थी और ट्रेन अब जूनागढ़ के बाहर कदम रख चुकी थी। कुदरत ने फिर एक चक्कर घुमाया था और इस बार किशोरीलाल या राजेश्वरीदेवी को बिल्कुल अंदाज़ा नही था की अब शायद ना जाने कहा और कब और कितने साल तक किशोरीलाल वापस नही आ पायेगा और राजेश्वरीदेवी और किशोरीलाल ज़िंदगी मे फिर मिलेंगे या नही और अगर हा तो कब मिल पायेंगे और अगर नही तो राजेश्वरीदेवी और जय का क्या होगा??? और सब से अहम बात क्या किशोरीलाल जिंदा भी रहेगा या मौत के घाट उतार दिया
जायेगा? या फिर ऐसी दर्दनाक सजा मिलेगी जिसने कभी कल्पना भी न की हो??? ये सवाल के जवाब हमारे पास नही है लेकिन उस परम चैतन्य के पास जरुर थे लेकिन वो कब हमे बतायेगा ये कौन जाने कहा???
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हेलो दोस्तो,
आज ये 20 वा भाग देने जा रहा हु और उसी के साथ फ्लेशबेक खत्म हो रहा है। 21 वे भाग से हम फिर से ‘जय’
के साथ जुडेंगे। बहुत सारे ससपेन्स आप ने फ्लेशबेक मे पढे और इस पर विचार भी किया होगा। लेकिन अक्सर क्या होता है हम पढ लेते है और फिर सोचते है की अगला अपडेट आयेगा पढ लेंगे। न कोइ लाइक्स, न कोइ टिप्पडी।
वाचको की इस महान और दुर्लभ सेवा से राइटर कुछ समज नही पाता है की कहानी सही जा रही है या नही। आज तक जितनी साइट पर मै गया हु वहा पर माहोल देखकर सिर्फ 4 या 5
भाग पोस्ट कर के अपने हथ्यार वापस खीच लेता हु। यहा पर भी मेरा लौटना निश्चिंत था।
बस एक एंजेल ने साथ दिया और वादा करता हु ये कहानी पुरी की पुरी एंजेल तक पहुचाउंगा।
चलो कुछ भुले बीसरे पल की बाते करते है इस कहानी को लेकर......
1.
इस कहानी के प्रथम भाग पर लिखा हुवा है की ये तीन पिढियो की कहानी है जिस मे जय के दादा, जय के पिताजी की कहानी आ चुकी है....वैसे दुसरी पीढी की कहानी और भी आगे आयेगी। लेकिन अब तीसरी पीढी पर ये कहानी जायेगी।
2.
प्रथम पेइज पर कहानी के बारे मे जितने भी पोइंट्स लिखे है उस मे से सिर्फ तीन पीढीयो और एग्रीमेन्ट के बारे मे अब तक आया है बाकी के सारे पोइंट्स आगे आगे आयेंगे।
3.
अब तक जितने भी सस्पेन्स आये है वो दुबारा याद करने की कोशीश करते है.......अगर कुछ भुल गया हु तो कोमेंट्स मे जरुर लीखना.........
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जय जेल मे क्यु है?
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जेल मे कोइ क्यु उसे मिलने नही आता?
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उसे वी.आइ.पी. ट्रीटमेन्ट कौन और क्यु दे रहा है?
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जय को जो तीन चीजे दीखती है वो क्या है? क्यु दीखती है?
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सुनंदा और उस के माता-पिता की मौत क्यु और कैसे हुइ ?
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क्या सही मे वो तीनो मरे है या मार दिये गये है या अब तक जिन्दा है?
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महाराजा और प्रिन्स एक हादसे मे मारे गये वो क्यु? मर्डर है या नेचरल या वो भी जिन्दा है?
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गंगाधर बाबु ने अपने ही बेटे को एक एग्रीमेन्ट से क्यु बांध रखा है?
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किशोरीलाल क्यु विक्रम की मदद करने पर तुला हुवा है? क्या उस की भी कोइ लालच या मजबुरी है?
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बंसी क्यु आज तक गुलामी कर रहा है? क्या वो जेल से बच पायेगा?
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क्रिष्ना ने तो सबकुछ देखा है फिर भी विक्रम से शादी क्यु की? केवल बच्चे के लिये या अभी भी उस का कोइ स्वार्थ है?
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कौन है वो गिरनारवाले बाबा? जहा से ये मुल कहानी शुरु हुइ ?
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जय की शादी क्या सचमुच विक्रम के घर पैदा हुइ लडकी से होगी? वैसे मैने बता दिया है की एक और कन्या जन्म ले चुकी है तो क्या गिरनारवाले
बाबा की भविष्यवा
णी जुठी है? फिर भी आगे परमात्मा की मरजी।
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बीजली कहा है? क्यु विक्रम को उस के साथ शादी के लिये हा करना पडा था?
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गंगाधरबाबु और नारायणप्रसाद दोनो ने रामेश्वर पर भरोसा क्यु किया?
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रामेश्वर कौन है? क्या है? क्यु विक्रम के पीछे पडा था? अब क्यु साथ दे रहा है? बंसी की जेलयात्रा मे क्या उन का कोइ योगदान है? क्यु वो बीजली की शादी विक्रम से करवाना चाहता था?
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मि. सेन जिस का सब से अहम रोल है वो क्या सही कर रहे है या वो भी कुछ साजिश मे शामिल है?
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जय को जेल मे ‘निशी सेन’ नाम की एक लडकी याद आती है जो एक एडवोकेट की बेटी है तो उस का मि. सेन से क्या कोइ रिश्ता हो सकता है?
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क्रिष्ना विदेश मे जहा मि. सेन के रीलेटीव के यहा रुकी थी वो रीलेटीव कौन है? उस का इस कहानी मे क्या रोल हो सक्ता है?
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वो फोटोग्राफर कौन है जिस ने विक्रम और सुनंदा की तसवीरे खीची?
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आगे इस कहानी मे वो कन्याकुमारी वाला पुलिसवाला या वो हवलदार या वो मच्छीमार का कोइ रोल है?
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12 करोड की सम्पति आइ कहा से जो विक्रम को वारसा मे जा रही है?
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वो आविश्कार जिसे किशोरीलाल ने रेडियो कहा था वो क्या है और इस कहानी मे उस का क्या रोल है?
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विक्रम के ड्रोइंग रुम मे जो तीरछी तसवीर है वो कभी सीधी दिखती है कभी तीरछी? वो क्यु ? क्या भुत है या कुछ और?
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विक्रम क्यु ऐसा है? क्या मजबुरी थी या है जो वो कांड पे कांड किये जा रहा था ? क्या अब वो सुधरेगा या और भी कांड करेगा? उस का आगे क्या होगा?
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सब से अहम सवाल किशोरीलाल अगर जिन्दा रहा या मर गया तब भी विक्रम को कभी सुधार पायेगा?
दोस्तो इन सारे सवालो के बारे मे आप टिप्पडी करे, चर्चा करे....... क्युकी आज के बाद कुछ दिन तक अपडेट नही दे सकुंगा। एक ब्रेक तो बनता है इस कहानी पर सोचने के लिये।...........ये कहानी
फिर से पढ लेना, याद कर लेना, क्युकी एक एक पोइन्ट, एक एक सस्पेन्स के जवाब आगे
मिलेंगे तब ये पोइंट्स याद रहे तो पुरी रहस्यमयी माला पिरोयी जा सकेगी। फिर मिलते
है एक छोटे से ब्रेक के बाद......।
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राधिका माधव
31-Jan-2022 12:51 PM
Impressive story, maja aa raha padh kar
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PHOENIX
31-Jan-2022 02:48 PM
Ok thank you very much. Stay tuned.
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🤫
19-Jan-2022 04:40 PM
ओह माय गॉड, सस्पेंस पर सस्पेंस है कहानी में। क्या चल रहा है? मिस्टर सेन ने ऐसा क्यों कहा। और फिर किशोरालाल ने साइन कर दिया। किशोरी लाल और राजेश्वरी ये दोनो तो किरदार ठीक ही लग रहे हैं लेकिन विक्रम का हमे सच में भरोसा नहीं है। ये ऐसा क्यों है? क्या ये बदल गया है या फिर सब दिखावा है। कृष्णा और बंसी दोनो की कोई मजबूरी नहीं कुछ और ही खिचड़ी लग रही है। बंसी को फंसाया जा रहा है। शायद उसे कुछ ऐसा पता लगा जो किसी के लिए ठीक नहीं हो। और रामेश्वर बिजली ये किरदार डेफिनेटली लौट कर आने वाले है। लेकिन महाराज और उसके सुपुत्र की अचानक मौत ...इसमें भी किसी षड्यंत्र की बू आ रही है। वेरी इंट्रेस्टिंग और सस्पेंस से भरी कहानी है आपकी। वेटिंग फॉर नेक्स्ट पार्ट....जब भी आए तब ही पढ़ लेंगे। ब्रेक तो बनता है।
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PHOENIX
19-Jan-2022 06:08 PM
धन्यवाद आप का। बहुत जल्द नेक्ष्ट अपडेट आयेगा।
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